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 कॉलेज अपनी बात हमारे एक दोस्त जनाब गिरीश माथुर जी का उर्दू अदब और शाएरी से गहरा रिशता रहा है। बराबर वह कुछ न कुछ सुनाते रहते थे। कुछ और लोग भी इस में जुटते गए और एक दिन मैं ने भी यू टूयब से लेकर कुछ सुनाना शुरू किया। फिर मुझे यू टूयब से लेना मुश्किल लगने लगा और मैं ने इसे बंद कर दिया। लेकिन एक दिन जनाब हरीश गुलाठी साहेब मेरे दोस्त ने मुझे बताया के रेखता ऐप से मैं ले सकता हूँ इसी द्रमियान कोवीड आ गया और कलब जाना बंद हो गया फिर छे सात दोस्त इसी कुंबे के जिन्हें शौक था गज़ल के साथ आए। 10 जून 2020 में आन लाईन ग्रुप 'महफिल' बन गई। इसी में जनाब तिलक राज मलिक साहेब, जनाब ओ पी बंगा साहेब, गिहानी जी वगैरह शामिल हुए फिर शाम में आधे घंटे के लिए गज़ल आन लाइन सुनाना शूरू हो गया। यह सिलसिला चलता रहा मैं ने भी सुनाना शूरू किया। क्रीब दो साल बाद गरमी में हम लोग गिहानी के साथ कसैली हिमाचल प्रदेश गए वहाँ पहली गजल अपने आप जहन में आई और फिर शाएरी शूरू होगई। उस वक्त मेरी उम्र 80 साल होने को थी। जनाब जकी अंसारी साहेब जो रेलवे में जेनर्ल मनेजर थे, ने मेरी शाएरी को बेहतर बनाने में अहम र्किदार अदा किय...

Shabisten-e-Neaam

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